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स्त्रियों पर अंकुश लगाता लोकतांत्रिक समाज

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जिस दिन भारत में एक पंचायती फरमान महिलाओं की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा रहा था उसके दूसरे ही दिन अमेरिका अपने देश की एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा था . उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक खाप पंचायत द्वारा महिलाओं पर लगाए गए अंकुश और अमेरिका में एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की घटना विकसित और विकासशील देशो के बीच मुद्दों में अंतर को रेखांकित करता है . भारतीय मूल की 46 वर्षीय अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स दूसरी बार अन्तरिक्ष में कदम रखने जा रही है और दूसरी ओर बागपत जिले के खाप पंचायत का फरमान है कि 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार में नहीं जा सकती है . क्या हम कल्पना कर सकते है कि सुनीता विलियम्स अगर भारत में होती तो क्या कर रही होती ?

क्या कारण है कि अमेरिका जैसे देशो में महिलायें इतनी स्वतंत्र है और भारत में महिलाओं के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है . हम कह सकते है कि वे देश आर्थिक रूप से संपन्न है . लेकिन यह केवल आर्थिक सम्पन्नता का ही मुद्दा नहीं है . यहाँ वैचारिक सम्पन्नता का मुद्दा ज्यादा अहम् है . आज भारत में यदि कोई महिला आर्थिक रूप से संपन्न भी है तो वह समाज की बुरी परम्परा और समाज की लगाईं गई पाबंदियो से मुक्त नहीं है . जिस प्रकार से बागपत जिले की खाप पंचायत ने अपने तानाशाही फैसले में महिलाओं के ऊपर उनकी स्वतन्त्रता को सीमित करने के फरमान जारी की है वह समाज की संकीर्णता के साथ ही प्रशासनिक शिथिलता को भी उजागर करता है . 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार नहीं जायेगी , महिलाए मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगी , सर और चेहरा ढँक कर ही कोई महिला बाहर निकलेगी जैसे फैसले क्या लोकतांत्रिक समाज की विशेषता इंगित कर सकता है ? ये फैसले हमें तालिबानी फरमानों से तुलना करने पर विवश करते है . उन समाजो का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों से समाज में अव्यवस्था और अराजकता पैदा हो रही है . लेकिन क्या महिलाओं का ही इसमें कसूर है , इसके अलावा और कोई कारक इसमें शामिल नहीं है . क्या कोई खाप पंचायत पुरुषो के ऊपर इस तरह के फैसले लेता है ? फिर महिलाओं को ही हर बात के लिए क्यों बलिदान देना होता है ? स्त्रियाँ महज पुरुषो की गुलाम होती है और समाज में पुरुष प्रधान है जैसी मानसिकता ही इस तरह के फैसलों का समर्थन कर सकती है .

खाप पंचायत के इन फैसलों के पहले भी 9 जुलाई को असम की एक किशोरी के साथ दुराचार की घटना को देखा गया . इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में प्रायः रोज ही महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती रहती है . राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011 में इस तरह की 2 .25 लाख घटनाएं दर्ज की गई है . हमारे समाज का एक बड़ा तबका नारी को उसी मध्यकालीन सोच की दृष्टि से देखता – समझता है . और यही समाज उन पर तमाम तरह के अत्याचार करता है . देश में महिलाओं पर कई तरह के अत्याचारों की घटनाएं प्रायः हम रोज सुनते है .राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ो के अनुसार भारत में प्रति 24 मिनट पर एक महिला यौन शोषण , प्रति 43 मिनट में एक महिला अपहरण , प्रति 54 मिनट में एक महिला बालात्कार , प्रति 102 मिनट में एक महिला दहेज़ प्रताड़ना की शिकार होती है . क्या ये आंकड़े किसी भी सभ्य समाज को स्वीकार्य होंगे? फिर भी हमारा समाज ही इन घटनाओं को अंजाम देता है . इसका कारण यह है कि हमारा समाज आज भी उस प्राचीन शोषणवादी मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है जो कि महिला को अबला का दर्जा देता है . पारंपरिक भारतीय समाज महिलाओं पर कई तरह की जन्मजात निर्योग्यताएं लागू कर दिया है जिस पर महिलाओं का कोई वश नहीं है . क्या कारण है कि आज भी हमारे समाज में बाल विवाह , दहेज़ ह्त्या , भ्रूण ह्त्या की घटनाएं प्रबल वेग से विद्यमान है ?

इन घटनाओं के दूसरी ओर प्रशासनिक शिथिलता का मुद्दा भी सामने आया ही . खाप पंचायत का फरमान और उसे मानने की विवशता क्यों है ? देश के अधिकाँश भागो में लोग अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी और अज्ञानता में जी रहे है . उनके लिए लोकतंत्र , समानता , मानवाधिकार , स्त्री अधिकार जैसे शब्द समझ से परे है . विकास की अंधी दौड़ में हम यह भी भूल गए है कि देश में नागरिको की जागरूकता भी कोई चीज होती है . ग्रामीणों के यह परम्परा रही है कि पंच परमेश्वर की तरह और उनका फैसला भगवान् का फैसला होता है . परन्तु आज यह पंच अपने मूल स्वरुप में नहीं है . उनका चरित्र और उनका फैसला दोनों विकृत हो चुका है . ऐसा इसलिए है क्योकि पांचो का संगठन मजबूत है . वे इलाके के दबंग और शक्तिशाली लोग होते है . उनके फरमान को मानना बाध्यकारी होता है . उनकी पैठ प्रायः प्रशासनिक अमले में भी होती है . अतः. उनके फैसले को न मानने का मतलब है बिरादरी और प्रशासन दोनों से दुश्मनी मोल लेना . यह तश्वीर वर्तमान भारत की है जिसने आजादी के 64 वर्षो का सफ़र तय कर लिया है . गांधी जी का सपना था कि वे भारत में मजबूत लोकतंत्र पैदा करे , जिसके लिए विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन जरुरी है . लेकिन वर्तमान में यह शासन दब्वंगो का शासन बन कर रह गया है . जाग्रुक्लता के अभाव में और बेहतर प्रशासनिक पहुँच के अभाव में देश की अधिकाँश आबादी इन संकीर्ण फरमानों को मानने को विवश है जिनका कोई लोकतांत्रिक मूल्य नहीं है .

भारतीय संविधान सभी नागरिको को धर्म , जाति , लिंग , भ%E

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